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लेखनी प्रतियोगिता -25-Nov-2022 सफलता

बड़ा कठिन विषय दे दिया है आपने स्टोरी मिरर जी । रात के बारह बजे से ही ढूंढने निकले हैं सफलता को । पता नहीं कहां जाकर छुप गई है । एक तो हमें यह नहीं पता कि सफलता किस चिड़िया का नाम है । जब पता ही नहीं है तो ढूंढें कैसे ? अरे, चिड़िया से याद आया कि एक बार कौरव पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य ने पेड़ पर एक चिड़िया लटका कर अपने सभी शिष्यों से उसकी बांयी आंख में निशाना लगाने को कहा था । केवल अर्जुन ही ऐसा कर पाया था बाकी तो चिड़िया की आंख भी नहीं देख पाये थे । इससे हमें यह तो समझ में आ गया कि सफलता है तो कोई चिड़िया ही जिसके पीछे सब लोग हाथ धोकर पड़े हैं । पर चिड़िया भी तो अनेक प्रकार की होती हैं । गुरु द्रोणाचार्य अगर यह भी बता देते कि सफलता फलां चिड़िया का नाम है तो कुछ बिगड़ जाता क्या उनका ? हमें इतनी मशक्कत तो नहीं करनी पड़ती । 
पर एक बात समझ में नहीं आई कि गुरू द्रोण ने केवल बांयी आंख पर ही निशाना लगाने को क्यों कहा था ? दांयी आंख पर क्यों नहीं ? क्या ये भेदभाव नहीं था ? दांयी आंख ने क्या बिगाड़ा था गुरु द्रोण का ? यहां पर भी गुरू द्रोणाचार्य भेदभाव कर गये । लगता है कि जिस तरह उन्हें अपने पुत्र अश्वत्थामा से विशेष लगाव था उसी तरह बांयी आंख से भी उन्हें विशेष लगाव हो ? कारण भी समझ में आ गया है । बांया अंग स्त्री का होता है ना इसलिए उन्होंने बांयी आंख पर निशाना लगाने को कहा होगा । नारी जाति का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है भला ? अगर आज गुरू द्रोणाचार्य होते तो समस्त नारीवादी , बड़ी बिंदी गैंग वाले शराब से हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गये होते । शराब से हाथ धोने को आप लोग अन्यथा मत लेना । जितने भी नारीवादी हैं वे "जल" को हाथ भी नहीं लगाते क्योंकि "जल" पुरुष है और वे नारीवादी होकर "जल" कैसे स्वीकार कर सकते हैं ? इसलिए वे जल के बजाय शराब ही काम में लेते हैं सब कार्यों में । सब कार्यों में "सब कार्य" शामिल हैं । इसीलिए तो सभी नारीवादी शराब जैसे सिल्की सिल्की नजर आते हैं । 
शराब चीज ही ऐसी है कि सबको भटका देती है । हम भी मूल विषय से भटक गये हैं शायद । तो हम सफलता ढूंढने निकल पड़े । जब हमें कहीं सफलता रूपी चिड़िया के दर्शन नहीं हुए तो हम इसके लिए एक जाने माने ज्ञानी जी के पास चले गये । ज्ञानी जी तो ज्ञान का खजाना हैं । हमने उन्हें अपनी समस्या बताई और सफलता कैसे मिलेगी इस बारे में पूछा । उन्होंने चुटकी बजाई और जवाब हाजिर । इतनी मजाल नहीं है किसी जवाब की कि वह ज्ञानी जी की चुटकियों की अवहेलना कर सके । उन्होंने अपने श्री मुख से फरमाया "बच्चा, जीवन में एक बात याद रखना ।  ये बांया अंग बहुत विशेष होता है । बांयें अंग में कन्या जब आती है तभी पत्नी बनती है । बांयी आंख जब चलती है तो लड़की पटती है और सफलता भी बांये हाथ का खेल ही है । इसलिए बांये अंग को पूरा सम्मान दो"  । 
मुझे ज्ञानी जी का ज्ञान समझ में आ गया था । मैंने महसूस किया कि इस देश में अधिकांश समस्याओं की जड़ में ये "वाम" ही है । मसलन "वामपंथ" । देश की जितनी भी समस्याएं हैं इन वामपंथियों ने ही पैदा की हैं । मसलन काश्मीर, अनौद्यौगिकीकरण, हिंसा , नक्सलवाद, छद्म सेकुलरिज्म वगैरह । इसका समाधान बहुत साधारण सा है । वामपंथ को उखाड़ फेंको और सफलता प्राप्त कर लो । वामपंथ खत्म, समस्याएं खत्म । 
हमने सुना था कि सफलता के पांच स्तंभ होते हैं । हम ज्ञानी जी से सफलता के पांच स्तंभों के बारे में पूछना तो भूल ही गये थे । यह तो वही बात हो गयी कि आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास । पूछना क्या था और पूछ क्या बैठे ? हमारे साथ यही समस्या है । 
हम इस प्रश्न को अपने सिर पर रखकर बोझ से दबे हुए अपन गली से गुजर ही रहे थे कि सामने से छमिया भाभी आती हुई मिल गईं । हाय, कितने दिनों बाद दर्शन हुये हैं उनके ? आंखें तरस गई थीं उनके दीदार को । कमर लचकाती हुई, नैन मटकाती हुई, कातिल मुस्कान से कत्लेआम करती हुई , काले घने बाल लहराती हुई और साड़ी के पल्लू को उंगलियों से घुमाती हुई इधर ही आ रही थीं वे । हमने उन्हें नजर भर कर देखना चाहा मगर "सफलता" का विषय सिर पर रखा होने के कारण उसके बोझ तले दबे दबे से हम उन्हें नजर भरकर देख ही नहीं पाये । इसका मलाल हमें ताजिंदगी अवश्य रहेगा । 
"इतने दबे दबे से क्यों लग रहे हो भाईसाहब ? क्या भाभी ने सुबह सुबह ही दो चार जड़ कर "हाथ साफ" कर लिये हैं " ? छमिया भाभी की मधुर वाणी हमारे कानों में अमृत तुल्य घुसते हुये सीधे हृदय के मध्य में विराजमान हो गई । हमने खिसियानी हंसी हंसते हुये कहा "ये तो उनका रोज का शगल बन गया है भाभीजी । उनको हाथ साफ किये बिना चैन नहीं आता है और हमें पिटे बिना । हमारी रग रग से वे वाकिफ हैं । हम अपनी आदतें बदल नहीं सकते तो वे अपनी आदतों को क्यों बदलें ? पर हम आज उनकी वजह से नहीं वरन "सफलता विषय " की वजह से परेशान हैं । हुआ यूं कि किसी ने हमसे रात के बारह बजे पूछ लिया कि सफलता के पांच स्तंभ बताओ । हमने लोकतंत्र के चार स्तंभ तो पढ़े थे मगर सफलता के पांच स्तंभ नहीं पढ़े कभी । बस, इसी के बोझ से दोहरे हो रहे हैं" 
मेरी बात पर वे खिलखिलाकर हंस पड़ी । जैसे मंदिर में एक साथ सैकड़ों घंटियां बज उठी हो । कसम से ,  हमारे सिर के बोझ ने उस निर्मल हंसी का हमें नजारा भी नहीं करने दिया । बस कानों से उसे पीते रहे । वे कहने लगी "बस, इतनी सी बात ? ये तो मेरे बांये अंग का खेल है" उन्होंने चुटकी बजाते हुये कहा । हमें फिर बांये अंग का महत्व पता चला । ये बांया अंग हर जगह बाजी मार ले जाता है । पाजी कहीं का । मन की बात मन में दबाते हुए हमने कहा "थोड़ा खुलकर कहो भाभीजी" 
हमारे कानों के पास अपना मुंह लाकर वे फुसफुसाकर कहने लगी "बड़े बेशर्म हो । बीच सड़क पर 'खुलकर' कहने के लिये कह रहे हो । कुछ लाज शर्म बची है कि नहीं ? हमने नहीं सोचा था कि इतने बड़े बेशर्म निकलोगे आप" ? उनकी आंखों से कृत्रिम रोष झलकने लगा । 
पासा उलटा पड़ता देखकर हमने मिमियाते हुये कहा "आप गलत समझ रहीं हैं भाभीजी । हमने खुलकर कहने के लिये कहा था जिसका मतलब था स्पष्ट कहो । आप कुछ और समझ बैठीं । हम ऐसी धृष्टता कैसे कर सकते हैं आपके साथ" ? "फिर ऐसे बोलिये ना ? अभी समझाती हूँ । पहली बात तो यह है कि सफलता की परिभाषा सबके लिये अलग अलग है । कोई यूनिवर्सल परिभाषा नहीं है सफलता की । किसी के लिए सफलता धन दौलत है तो किसी के लिए सत्ता । कोई नाम कमाना चाहता है तो कोई प्यार से दिल जीतना चाहता है । कोई परीक्षा में पास होना चाहता है तो कोई जिंदगी की जंग जीतना चाहता है । किसी की चाहत दूसरों का बुरा करना है तो कोई आतंक फैलाकर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है । इसलिए सबकी सफलता के अलग अलग मायने हैं । अब आप ही देखो ना । आपके भाई भुक्खड़ सिंह ने जब से मुझे देखा तब से मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गए और एक दिन उन्होंने मुझे पा ही लिया । उनके लिए सफलता का मतलब मैं ही हूँ" । हमने मन.ही मन सोचा कि बात तो सही कह रही हैं छमिया भाभी । भुक्खड़ सिंह जी वाकई बहुत सफल व्यक्ति हैं क्योंकि आप उनके साथ हैं । काश ... 
उन्होंने आगे कहा "आजकल सफलता के स्तंभ भी बदल गये हैं । कोई जमाना था जब सफलता सत्य, ईमानदारी, नैतिकता, अहिंसा और सहृदयता के स्तंभों पर खड़ी हुई थी । लेकिन समय की मार ने उन पांचों स्तंभों को कमजोर कर दिया । इससे पहले कि सफलता रूपी भवन भरभरा कर गिर पड़े लोगों ने उन पुराने टूटे फूटे स्तंभों को हटाकर नये स्तंभ लगा दिये । इनमें पहला स्तंभ है मतलब । सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है ये । मतलब के लिए गधे को भी बाप कह जाते हैं लोग । आज की सफलता का पहला स्तंभ मतलब हो गया है । मतलब पड़े तो पेट में घुस जाओ और मतलब निकलने के बाद उसे पहचानने से ही इंकार कर दो । 
सफलता का दूसरा स्तंभ है धूर्तता, मक्कारी । अपनी जबान का कोई मूल्य नहीं । आज कुछ कह दो , कल उससे पलट जाओ और दांत दिखाते रहो । बेशर्मी की चादर ओढ़ लो । बस , सफलता निश्चित है । "सर जी" इसके बहुत बढिया उदाहरण हैं । तीसरा स्तंभ है "पैसा ही माई बाप है" मंत्र । चौबीसों घंटे इसका जाप करते रहो । चौथा स्तंभ है "धोखा" । जो जितना ज्यादा धोखा देगा वह उतना ही ज्यादा सफल व्यक्ति कहलायेगा । इसलिए लोगों को धोखा दीजिए । आंखों में धूल झोंकिये और सफल बनिये । आजकल यह हथियार बहुत काम आता है । महाराष्ट्र और बिहार इसके सटीक उदाहरण हैं ।और पांचवा स्तंभ है "दोगलापन" । कहो कुछ और करो कुछ । दांये हाथ को पता नहीं चले कभी बांया हाथ क्या कर रहा है और इसी तरह बांये हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए । यही मूल मंत्र है" । लिब्रांडु दोगलापन के पर्याय हैं । 
उनका ज्ञान किसी ज्ञानी से कम नहीं है । हालांकि वे कभी भी कंदराओं में नहीं गयीं मगर औरतों को कंदराओं में जाने की जरुरत ही कहां है । वे तो पैदाइशी ज्ञानी हैं । उनके इस ज्ञान से हम धन्य धन्य हो गये । हमें सफलता और उसके पांच स्तंभों के बारे में पता चल गया । 
श्री हरि 
25.11.22 

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11 Comments

Punam verma

26-Nov-2022 08:55 AM

Very nice

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Haaya meer

25-Nov-2022 07:38 PM

Amazing

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Hari Shanker Goyal "Hari"

26-Nov-2022 06:28 AM

धन्यवाद जी

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Sachin dev

25-Nov-2022 03:54 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

26-Nov-2022 06:28 AM

धन्यवाद जी

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